| 1. | इस ग्रिड को धन विभव पर रखते हैं।
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| 2. | यह रूप और धन विभव किस काम आवेगा!
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| 3. | फिर दुखी रहने लगा, वह देवहूती का रूप जीवन देखती, उसके धन विभव की
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| 4. | क्यों दिया! इतना धन विभव क्यों दिया!!! जो सदा उसको जलना ही है, तो
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| 5. | इस कारण वे बेलन की ओर खिंच जाते हैं जो धन विभव पर रहता है।
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| 6. | यदि धन विभव को पर्याप्त अधिक बढ़ा दिया जाए तो निम्न ताप पर भी उत्सर्जन हो सकता है।
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| 7. | इस कारण ऐसा लग सकता है कि थोड़े ही धन विभव पर काफी तापायनिक धारा बह सकती है।
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| 8. | कभी कभी एक ग्रिड का कार्य, जो धन विभव पर रहता है, सहायक पट्टिक के रूप में होता है।
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| 9. | परंतु यह देखा गया है कि अधिक धारा प्रवाहित करने के लिए अधिक धन विभव की आवश्यकता होती है।
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| 10. | दूसरे ध्रुव को धनाग्र (एनोड) अथवा पट्टिका (प्लेट) कहते हैं जो ऋणाग्र की अपेक्षा धन विभव पर रखा जाता है।
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